BA Semester-3 DarshanShastra - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

गीता में वर्णित गुण-प्रकार

गीता में प्रकृति के अन्तर्गत तीन गुणों (सत्व गुण, रजोगुण एवं तमोगुण ) को स्वीकार किया गया है। सत्व गुण अत्यन्त ही निर्मल, स्वच्छ, दोषरहित, ज्ञान देने वाला तथा सांसारिकता से विमुक्त करने वाला होता है। सत्व गुण से व्यक्ति को वास्तविक सुख एवं ज्ञान की प्राप्ति होती है। सभी गुणों में सत्व गुण सात्विकता के कारण सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह गुण मनुष्य को उच्च स्थिति प्रदान करता है। रजोगुण से प्रेरित होकर मनुष्य अनुरक्त होकर अपने कर्मों का सम्पादन . कर  ता है। रजोगुण सत्व गुण की अपेक्षा निम्न है। रजोगुण के कारण मनुष्य भौतिक एवं सांसारिक सुखों की ओर आकृष्ट होता है, जिस कारण वह बंधनग्रस्त होता है। तमोगुण अज्ञान का कारण है। इसके कारण मनुष्य में भ्रम, आलस्य, प्रमाद, निद्रा, मोह इत्यादि की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार सत्व गुण सुख का, रजोगुण कर्म का तथा तमोगुण अज्ञान का प्रतीक है। इन्हीं गुणों के आधार पर वर्णों की संरचना की गई है। सत्व गुण की प्रधानता वाला ब्राह्मण, रजोगुण की प्रधानता वाला क्षत्रिय, तमो एवं रजोगुण की प्रधानता वाला वैश्य एवं तमोगुण की प्रधानता वाला शूद्र कहलाया।

गीता में यह कहा गया है कि सत्व गुण ज्ञान का, रजोगुण लोभ तथा तमोगुण मोह का एवं अज्ञान का प्रतीक है। मनुष्य अपनी प्रकृति एवं वृत्ति के अनुसार इन तीनों गुणों में से किसी न किसी एक गुण से अवश्य प्रभावित होता है। व्यक्ति का कर्म उसकी गुणात्मक प्रकृति के द्वारा ही संचालित होता है। श्रद्धा, यज्ञ, तप, दान इत्यादि कार्य भी सात्विक, राजसिक एवं तामसिक प्रवृत्तियों से संचालित एवं प्रभावित होते हैं।

सात्विक, राजसिक एवं तामसिक गुण प्रकृति से उत्पन्न होते हैं तथा इस अविनाशी जीवात्मा को शरीर से बांधते हैं। गीता के अनुसार सत्व गुण निर्मल होने के कारण प्रकाशक, शरीर के सुख तथा ज्ञान से समृद्ध करने वाला है। रजोगुण तृष्णा एवं आसक्ति का कारण है तथा यह मनुष्य को कर्म- बंधन में बांधता है। तमोगुण का स्वरूप अज्ञानमूलक है, जिस कारण यह मनुष्य में मोह, आलस्य एवं निद्रा उत्पन्न करता है। ये तीनों गुण एक साथ नहीं होते हैं। किसी न किसी एक गुण की प्रधानता होती है तथा अन्य दो गुण दबे हुये होते हैं।

सत्व गुण ज्ञान की प्राप्ति कराता है जिससे सत्य तक सुगमतापूर्वक पहुँचा जाता है। गुण के द्वारा कर्म एवं संसार का ज्ञान प्राप्त होता है। शरीर के संयोग से उत्पन्न होने वाले तीनों गुणों को पारकर जन्म, मृत्यु, जरा एवं दुःख से छुटकारा पाकर गुणातीत हो जाता है। इस अवस्था को प्राप्त करने से व्यक्ति प्रवृत्ति एवं निवृत्ति दोनों से ही वह उदासीन हो जाता है। उसे यह ज्ञान होता है कि गुण ही कर्ता है जिस कारण वह कर्मफल के सम्बन्ध में स्थिर रहता है तथा प्रिय एवं अप्रिय दोनों ही उसे समान प्रतीत होते हैं।

व्यक्ति कभी भी पूर्णरूपेण कर्म का परित्याग नहीं कर पाता है। वास्तव में जो कर्मफल का त्याग करता है वही सच्चा त्यागी होता है। इस त्याग में भी सात्विक, तामसिक एवं राजसिक विशिष्टताएँ सन्निहित होती हैं। वर्ण-धर्म का मोह त्याग करना तामसिक त्याग कहलाता है। कर्म को दुःख एवं कलेश के रूप में समझकर शारीरिक कष्ट के भय से कर्म का त्याग करना राजसिक त्याग कहलाता है। नियत कर्म को वांछनीय मानकर उसके फल का त्याग करना सात्विक त्याग है। अकल्याणकारी कार्य से द्वेष न करने वाला तथा कल्याणकारी कर्म में आसक्त न होने वाला व्यक्ति विशुद्ध सत्व गुण सम्पन्न, ज्ञानी एवं त्यागी होता है। मनुष्य कभी भी इन तीन गुणों के प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकता है।

गीता के अनुसार व्यक्ति गुण के फलस्वरूप ही ज्ञाता एवं कर्ता होता है। इन तीन गुणों के कारण ही क्रियायें संचालित होती हैं। सत्व, रज एवं तम गुणों के द्वारा ही ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति तथा सुख की उत्पत्ति होती है। विविधता में एकत्व का भाव सात्विक ज्ञान है। भिन्न-भिन्न भूतों में भिन्न-भिन्न भावों की उत्पत्ति राजसिक ज्ञान है। अस्थिर ज्ञान की उत्पत्ति तामसिक ज्ञान है। कर्मफल की आकांक्षारहित होकर किया हुआ कर्म सात्विक कर्म होता है; फल की आकांक्षा रखकर परिश्रम से किया हुआ कर्म राजसिक कर्म होता है तथा परिणाम पर विचार किए बिना आज्ञानपूर्वक किया हुआ कर्म तामसिक कर्म होता है। सात्विक कर्ता वह है जो आसक्तिरहित, धैर्यवान, हर्ष एवं शोक से उदासीन होता है। राजसिक कर्ता वह है जो आसक्तिपूर्वक फल की आकांक्षा रखकर हर्ष एवं शोक से प्रभावित होता है। तामसिक कर्ता वह है जो अज्ञानी, अशिक्षित, धूर्त, आलसी तथा दीर्घसूत्री होता है।

गीता में गुणों के आधार पर बुद्धि का भी वर्गीकरण किया गया है। प्रवृत्ति एवं निवृत्ति मार्ग, कर्तव्य एवं अकर्तव्य तथा बंधन एवं मोक्ष को सही एवं यथार्थ रूप से जानने वाली बुद्धि को सात्विक बुद्धि कहते हैं। राजसिक बुद्धि वह है जिसके द्वारा मनुष्य धर्म एवं अधर्म तथा कर्तव्य एवं अकर्तव्य की वास्तविकता को नहीं जान पाता है। यथार्थ को अयथार्थ तथा सत्य को असत्य अनुभूत करने वाली तामसिक बुद्धि कही गई है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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